अमेरिका में एप्पल पर धार्मिक भेदभाव का मुकदमा, यहूदी कर्मचारी को छुट्टी और नौकरी से किया गया वंचित

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Published On: 1 October 2025

अमेरिका के वर्जीनिया स्थित एप्पल स्टोर में काम करने वाले टायलर स्टील ने कंपनी पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाते हुए संघीय न्यायालय में मुकदमा दायर किया है। टायलर का कहना है कि एप्पल के नए मैनेजर ने उन्हें यहूदी त्योहार सब्बाथ पर छुट्टी देने से मना किया और बाद में नौकरी से निकाल दिया। स्टील का आरोप है कि मैनेजर ने यहूदियों के प्रति पूर्वाग्रह दिखाया और उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

छुट्टी और धर्म पर रोक

स्टील ने दावा किया है कि उन्हें इजरायल पर हमास द्वारा किए गए हमले का उल्लेख करने से भी मना किया गया। एप्पल स्टोर में जब उन्होंने सब्बाथ के अवसर पर छुट्टी मांगी, तो नए मैनेजर ने इसका स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। इसके बावजूद, स्टील ने दो बार कंपनी से शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

EEOC ने दिया समर्थन

समान रोजगार अवसर आयोग (EEOC) ने इस मामले पर संज्ञान लिया है। यह संस्था कार्यस्थल पर कर्मचारियों के साथ भेदभाव और अन्याय के खिलाफ कार्य करने के लिए जानी जाती है। EEOC की कार्यकारी अध्यक्ष एंड्रिया लुकास के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक सुरक्षा और अधिकारों में कमी देखी गई है। उन्होंने कहा कि स्टील का मामला इस कमी को उजागर करता है।

16 साल का करियर खत्म

जानकारी के अनुसार, टायलर स्टील ने 2007 में एप्पल में नौकरी शुरू की थी। 2023 में उन्होंने यहूदी धर्म अपनाया। इसी दौरान वर्जीनिया स्टोर में नया मैनेजर नियुक्त हुआ। जनवरी 2024 में, शिकायतों के बावजूद, स्टील को नौकरी से निकाल दिया गया। EEOC का कहना है कि यह कार्रवाई नियोक्ता द्वारा धार्मिक भेदभाव का स्पष्ट उदाहरण है।

मुकदमे में मांग

स्टील ने मुकदमे में कंपनी से बकाया वेतन, आर्थिक नुकसान की भरपाई और अन्य मुआवजे की मांग की है। उनका कहना है कि धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन केवल नौकरी से हटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे उनका करियर और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ।

ऐतिहासिक संदर्भ

यह मामला नागरिक अधिकार अधिनियम 1964 के उल्लंघन का श्रेणीबद्ध उदाहरण माना जा रहा है। अमेरिका में कार्यस्थल पर धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान संवैधानिक अधिकार है और किसी भी कर्मचारी को धर्म के आधार पर भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केस बड़े कॉर्पोरेट संस्थानों में धार्मिक भेदभाव रोकने की दिशा में मील का पत्थर बन सकता है।

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