भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 60वें सत्र में पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा कि दुनिया में सबसे खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों में से एक को अपने देश में धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले बड़े पैमाने पर उत्पीड़न और भेदभाव पर ध्यान देना चाहिए।
जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन के काउंसलर के.एस. मोहम्मद हुसैन ने कहा कि यह विडंबना है कि ऐसे देश दूसरों को उपदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाकर मंच का दुरुपयोग करना पाकिस्तान की पाखंड को ही उजागर करता है। हुसैन ने यह स्पष्ट किया कि भारत अपने लोगों के मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम कर रहा है।
कश्मीर पर भारत का रुख
हुसैन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा। भारत लगातार इस क्षेत्र में अपने लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने और सतत विकास को साकार करने के प्रयास कर रहा है। उन्होंने सभी देशों से अपील की कि वे मानवाधिकार के सार्वभौमिक आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएं।
मानवाधिकारों का महत्व
हुसैन ने वियना घोषणा और कार्ययोजना (VDPA) का भी उल्लेख किया। यह दस्तावेज 1993 के विश्व मानवाधिकार सम्मेलन के बाद अपनाया गया था और इसका उद्देश्य मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि सभी देशों को सामूहिक रूप से VDPA के आदर्शों का पालन करना चाहिए।
भारत की अपील
भारत का मानना है कि अन्य देशों को अपनी आलोचना करने से पहले अपने समाज में व्याप्त उत्पीड़न और भेदभाव पर ध्यान देना चाहिए। हुसैन ने यह भी कहा कि भारत हमेशा अपने नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा और उनकी भलाई के लिए काम करता रहेगा।
मानवाधिकार परिषद में भारत की यह प्रस्तुति इस बात को दिखाती है कि देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने रुख को मजबूती से पेश कर रहा है। भारत ने पाकिस्तान की आलोचना करते हुए यह संदेश भी दिया कि केवल आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि अपने ही देश में मानवाधिकारों की सुरक्षा करना प्राथमिक जिम्मेदारी है।
इस बैठक में भारत ने यह भी दोहराया कि वह कश्मीर और अन्य क्षेत्रों में अपने नागरिकों के अधिकार सुनिश्चित करने और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के पालन के लिए प्रतिबद्ध है।