लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा 4 दिनों तक मनाया जाता है, जो छठी मैय्या और सूर्य देव को समर्पित है। इसका पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन संध्या अर्घ्य और चौथा दिन उषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है। तीसरे दिन अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा होती है, जबकि चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के शहरों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा का पावन पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बड़े उत्साह के साथ चार दिनों तक मनाया जाता है। इस महापर्व के तीसरे दिन अस्तगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की अनूठी परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शाम के समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, इसलिए इस समय उन्हें अर्घ्य देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
संध्याकाल अर्घ्य
छठ महापर्व के तीसरे दिन, यानी आज संध्याकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन छठ व्रती महिलाएँ और पुरुष, 36 घंटे के निर्जला व्रत के साथ, नदी या तालाब के किनारे एकत्र होकर डूबते हुए सूर्य देव (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान छठ व्रती पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को दूध और जल अर्पित करते हैं तथा छठी मैया की पूजा-अर्चना करते हैं। यह दिन संतान के स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए विशेष महत्व रखता है। इसके अगले दिन, मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।
महूर्त
इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर, सोमवार की शाम 5 बजकर 40 मिनट पर दिया जाएगा। यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है और इसके बाद अगले दिन, 28 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जिसके साथ इस महापर्व का समापन होगा। यह समय सूर्यास्त का सामान्य समय है।
अर्घ्य देने का कारण
- छठ पूजा के दौरान डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह है कि यह जीवन के उतार-चढ़ाव और संतुलन को दर्शाता है।
- यह एक नई शुरुआत और मेहनत व तपस्या के फल की प्राप्ति का प्रतीक है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, इसलिए इस समय पूजा करने से जीवन में आ रही समस्याएं दूर होती हैं।
- लोगो की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।
- यह संध्या अर्घ्य जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शक्ति और संतुलन बनाए रखने में भी सहायक माना जाता है।
महत्वपूर्ण मान्यताएं
- डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे कई महत्वपूर्ण मान्यताएं हैं।
- यह जीवन चक्र का प्रतीक माना जाता है,
- जो यह दर्शाता है कि हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है, यानी जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार, शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से मानसिक तनाव से राहत मिलती है और जीवन में शांति आती है।
- छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने की यह परंपरा जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा बनाए रखने का भी प्रतीक है।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
