आज मनाया जा रहा कार्तिक पूर्णिमा, इतिहास और श्रद्धा का प्रतीक; जानिए इस दिन घटने वाली 5 महत्वपूर्ण घटनाएं

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Published On: 30 November 2025

कार्तिक मास की सबसे महत्वपूर्ण तिथि कार्तिक पूर्णिमा इस साल 30 नवंबर को मनाई जा रही है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन लोग जप, दान और पवित्र नदियों में स्नान करके अपने पापों के नाश और पुण्य की प्राप्ति करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए धार्मिक कार्य कई गुणा फलदायी होते हैं। इसके अलावा, इस दिन पांच महत्वपूर्ण घटनाओं के होने की वजह से यह हिन्दू धर्म में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पांडवों का दुख समाप्त हुआ, इसलिए इसे विशेष धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व प्राप्त है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है। इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं

कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन दान करने, जप करने और पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए पुण्यकर्म का फल कई गुना अधिक मिलता है और यह दिन सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य लेकर आता है।

इस दिन पांच घटने वाली 5 घटनाएँ 

  • भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्य अवतार के रूप में माना जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार, इस अवतार में भगवान ने प्रलय के समय वेदों की रक्षा की थी। विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह अवतार माना जाता है, इसलिए वैष्णव मत में इस पूर्णिमा का अत्यधिक धार्मिक और पवित्र महत्त्व है।
  • शैव परंपरा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाता है। इस दिन उन्होंने विशेष रथ पर बैठकर अजेय असुर त्रिपुरासुर का वध किया। त्रिपुरासुर के नाश से तीनों लोकों में धर्म की स्थापना हुई। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
  • महाभारत युद्ध में अपने सगे संबंधियों की असमय मृत्यु से पांडवों का गहरा दुःख हुआ। उनकी पीड़ा को देखकर भगवान कृष्ण ने पितरों की शांति का उपाय बताया। इस उपाय के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की कृष्ण अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक पितरों की आत्मा की शांति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में पिंडदान और दीपदान किया जाता है।
  • मान्यताओं के अनुसार, तुलसी का विवाह देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ हुआ था। इसके बाद, पूर्णिमा के दिन तुलसी बैकुंठधाम गई, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा का सिख धर्म में विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि इसी दिन सिख धर्म की स्थापना हुई थी और प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। सिख धर्म के अनुयायी इस पावन दिन को प्रकाश उत्सव के रूप में मनाते हैं।

डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।

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