लाइफस्टाइल | छोटे बच्चों को सुबह उठाकर स्कूल भेजना वाकई में बहुत से पेरेंट्स के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। बच्चों का “स्कूल नहीं जाना”, “पेट में दर्द”, “नींद नहीं खुलना” या “यूनिफॉर्म नहीं पहनना” जैसी बातें रोज़ की कहानी बन गयी हैं। लेकिन कुछ स्मार्ट और संवेदनशील तरीकों से इस परेशानी को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बच्चों के प्रति धैर्य, और प्यार भरे व्यवहार से सुबह का स्कूल रूटीन भी आसान बन सकता है। बच्चों की छोटी-छोटी बातों और भावनाओं को समझना और समय पर रेस्पॉन्ड करना पेरेंटिंग का सबसे बड़ा हिस्सा होता है।
जब बच्चे स्कूल के नाम पर रोते हैं या जिद करने लगते हैं। यह स्थिति बच्चों और माता-पिता दोनों के लिए मानसिक रूप से थकाने वाली होती है। लेकिन कुछ सरल और कारगर उपायों को अपनाकर आप इस परेशानी को काफी हद तक कम कर सकते हैं:
दे उनकी पसंद की टिफिन
बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके लंच बॉक्स को स्वादिष्ट, रंग-बिरंगा और पौष्टिक बनाना बहुत ज़रूरी है। जब बच्चों को मनपसंद खाना मिलता है, तो वे खुशी-खुशी स्कूल जाते हैं और लंच टाइम का इंतज़ार भी करते हैं।
स्कूल को बताएं मजेदार
बच्चों को यह समझाएं कि स्कूल में बहुर सारे झूले है, आप लोगों को वहां खेलने के लिए भेजा जाता है, इससे बच्चे खुश होकर रोजाना स्कूल जायेंगे और पढ़ाई भी करेंगे
रोजाना कराएं होमवर्क
अगर बच्चे का टाइम से वर्क पूरा हुआ रहेगा, तो बच्चा रोजाना स्कूल जायेगा। क्युकी बच्चे को उस दिन स्कूल में तारीफ मिलेगी, जिससे बच्चा खुश होकर कभी स्कूल जाने को मना नही करेगा।
बच्चे की सुनें बात
अगर बच्चा बार-बार स्कूल नहीं जाना चाहता, तो ध्यान दें कि कहीं कोई वजह तो नहीं – जैसे कोई बच्चा तंग करता हो, टीचर डांटती हो, या उसे कोई चीज़ समझ नहीं आती। उसकी बात को गंभीरता से लें।
दें इनाम और प्रोत्साहन
अगर बच्चा बिना रोए स्कूल जाता है, तो उसकी तारीफ करें या उसे छोटा सा इनाम दें – जैसे स्टिकर, रंगीन पेंसिल, या एक कहानी। इससे वह अगली बार और खुशी से स्कूल जाएगा।
आजकल जब भी बच्चा रोता है, तो पैरेंट्स झट से मोबाइल उसके हाथ में पकड़ा देते हैं, ताकि वह चुप हो जाए। यह तरीका भले ही कुछ समय के लिए काम कर जाए, लेकिन लंबे समय में यह बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इससे बच्चों को मोबाइल की लत लग जाती है, और फिर वे बिना मोबाइल के रहना नहीं सीख पाते। इसलिए जरूरी है कि अगर आप बच्चे को मोबाइल दे भी रहे हैं।
उसमें सिर्फ शैक्षणिक और ज्ञानवर्धक सामग्री दिखाएं- जैसे कि कविताएं, अल्फाबेट, रंग पहचानने वाले वीडियो या नैतिक कहानियां। मोबाइल गेम्स बच्चों को तात्कालिक तौर पर चुप करा सकते हैं, लेकिन ये धीरे-धीरे उन्हें चिड़चिड़ा और रोने का आदि बना सकते हैं। ऐसे में बच्चों के मानसिक विकास पर भी असर पड़ सकता है।
न करें तुलना
अक्सर माता-पिता अनजाने में अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करने लगते हैं- “देखो, वो बच्चा कितना जल्दी तैयार हो जाता है”, या “उसके नंबर हमेशा अच्छे आते हैं”, लेकिन इस तरह की तुलना बच्चों का आत्मविश्वास तोड़ सकती है और उन्हें स्कूल से और ज्यादा दूर कर सकती है।
इसके बजाय बच्चों को प्यार और प्रेरणा के जरिए स्कूल के लिए तैयार करें। सुबह उन्हें अच्छे शब्दों से जगाएं, उनकी तारीफ करें और बताएं कि स्कूल में उन्हें क्या मज़ा आने वाला है। बच्चों को स्कूल के लिए उत्साहित करने के लिए आप कुछ छोटे-छोटे उपाय अपना सकते हैं।
