13 सितंबर 2025, शनिवार को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है। इस दिन सप्तमी श्राद्ध मनाया जाएगा, जो पितृ पक्ष में किया जाने वाला एक खास अनुष्ठान है। यह श्राद्ध उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि को हुई थी और इसे सातवें श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक दृष्टि से इस दिन त्रयोदशी श्राद्ध भी मनाया जाता है।
13 सितंबर 2025 को धार्मिक दृष्टि से त्रयोदशी श्राद्ध का दिन मनाया जाएगा। यह दिन पितरों की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खास माना जाता है, और शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं।
सप्तमी श्राद्ध
13 सितंबर 2025, शनिवार को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है और इस दिन सप्तमी श्राद्ध मनाया जाएगा। यह श्राद्ध उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि को हुई थी। इस अवसर पर पिंडदान और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को सुख-समृद्धि और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं। यह पर्व पितृ कृपा प्राप्त करने और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। श्रद्धापूर्वक श्राद्ध और तर्पण करने से परिवार में शांति, संतुलन और सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही, शनिवार होने के कारण इस दिन शनि देव की कृपा भी प्राप्त करने का विशेष अवसर मिलता है।
त्रयोदशी श्राद्ध
13 सितंबर 2025 को धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण त्रयोदशी तिथि है, इस दिन त्रयोदशी श्राद्ध का आयोजन किया जाता है। यह श्राद्ध पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले पुण्यकर्म और श्राद्ध अनुष्ठान शुभ फलदायी होते हैं, इसलिए श्रद्धालु इसे विशेष श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ संपन्न करेंगे।
महत्व
- 13 सितंबर 2025 को त्रयोदशी श्राद्ध का विशेष महत्व है।
- इस दिन किए गए सभी कार्य शुभ माने जाते हैं।
- पितरों की शांति तथा आशीर्वाद प्राप्त करने का उत्तम अवसर होता है।
- श्रद्धापूर्वक किए गए पिंडदान और तर्पण से परिवार में सुख-समृद्धि और संतुलन बना रहता है।
विधि
- त्रयोदशी तिथि को पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए श्राद्ध किया जाता है।
- इस दिन सबसे पहले स्वच्छ स्थान पर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए और नए वस्त्र धारण करने चाहिए।
- तत्पश्चात पितरों के नाम का स्मरण करते हुए पिंडदान और तर्पण किया जाता है।
- तर्पण के समय अक्षत (चावल), जल और तिल का प्रयोग किया जाता है।
- श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान देना और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
- इस विधि से पितर प्रसन्न होते हैं और वंशजों को सुख, समृद्धि और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
