2025 में शनि वक्री, इस राजयोग से खुल सकते हैं किस्मत के दरवाजे; जानिए कौन सी हैं लकी राशियाँ!

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Published On: 11 July 2025

ज्योतिष | वैदिक ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश और कर्मफलदाता माना गया है। शनि व्यक्ति के पिछले और वर्तमान कर्मों के आधार पर फल देता है। यह जीवन में धैर्य, अनुशासन, संघर्ष और तपस्या का प्रतीक है। शनि की गति अन्य ग्रहों की तुलना में बहुत धीमी होती है। यह एक राशि में लगभग 2.5 वर्ष (ढाई साल) तक रहता है। पुनः उसी राशि में लौटने में लगभग 30 वर्ष लगते हैं।

वर्तमान में शनि मीन राशि में गोचर कर रहे हैं और 13 जुलाई 2025 को इसी राशि में वक्री हो जाएंगे। शनि के वक्री होने का प्रभाव हर जातक की कुंडली पर अलग-अलग रूप से पड़ता है, क्योंकि यह ग्रह जहां स्थित होता है, वहां के साथ-साथ पिछले भाव का भी फल देने लगता है।

वक्री शनि

वक्री शनि (Retrograde Saturn) वैदिक ज्योतिष में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्थिति मानी जाती है। जब शनि वक्री (Retrograde) होता है, तो इसका मतलब है कि वह आकाश में पृथ्वी से देखने पर उल्टी दिशा में चलता हुआ प्रतीत होता है। हालांकि यह वास्तविक गति नहीं होती, बल्कि एक खगोलीय दृष्टि भ्रम होता है, लेकिन इसका ज्योतिषीय प्रभाव गहरा होता है। इसका प्रभाव शनि वक्री होने पर जातक को अपने पुराने कर्मों की ओर लौटना पड़ता है। अर्थात भूतकाल में किए गए कार्यों के परिणामों का सामना करना।

केंद्र-त्रिकोण राजयोग (Kendra Trikona Rajyog) एक अत्यंत शुभ योग माना जाता है, जो वैदिक ज्योतिष में अत्यधिक प्रभावशाली फल देता है। जब किसी जातक की कुंडली में केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) और त्रिकोण (1, 5, 9 भाव) के स्वामी ग्रह परस्पर संबंध में आते हैं—विशेषकर योग बनाते हैं, तो यह राजयोग का निर्माण करता है।

वक्री शनि के साथ केंद्र-त्रिकोण राजयोग

जब शनि देव मीन राशि में वक्री होते हैं, तो यह एक विशिष्ट और शक्तिशाली योग का निर्माण करते हैं — केंद्र-त्रिकोण राजयोग। इस बार यह योग अत्यंत दुर्लभ है और कुछ राशियों के लिए बहुत ही शुभ फलदायी सिद्ध होने जा रहा है। इस राजयोग से लोगों को अचानक धन लाभ मिलने लगता है, सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि, करियर में अप्रत्याशित तरक्की, नए अवसरों की प्राप्ति होती है। इस राजयोग में मकर, कुंभ, मीन, वृषभ और तुला राशि के जातकों के लिए यह समय विशेष रूप से अनुकूल रह सकता है (व्यक्तिगत कुंडली के अनुसार भिन्नता संभव है)

कैसे बनता है केंद्र त्रिकोण राजयोग

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब कुंडली में केंद्र भाव (जैसे प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम) और त्रिकोण भाव (प्रथम, पंचम और नवम) के स्वामी आपस में संबंध बनाते हैं, तो उसे केंद्र त्रिकोण राजयोग कहा जाता है। यह योग अत्यंत शुभ माना गया है, और इसके प्रभाव से जातक को जीवन में धन, सफलता, प्रतिष्ठा और सम्मान की प्राप्ति होती है। ऐसे योग बनने पर व्यक्ति का भाग्य प्रबल होता है और उसे समाज में एक खास स्थान मिलता है।

2025 के सावन में बन रहा विशेष राजयोग

इस बार 30 साल बाद सावन माह में एक दुर्लभ केंद्र-त्रिकोण राजयोग का निर्माण हो रहा है, जो जातकों को अचानक धन लाभ, पदोन्नति, सुख-सुविधाओं में वृद्धि और जीवन में स्थायित्व दिला सकता है।

डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है.

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