23 जुलाई को सावन शिवरात्रि; जानें तिथि, भद्राकाल, पूजा विधि और महत्व

Author Picture
Published On: 23 July 2025

ज्योतिष | सावन मास की मासिक शिवरात्रि इस वर्ष 23 जुलाई, बुधवार को पड़ रही है, जो भगवान शिव के भक्तों के लिए एक अत्यंत पुण्यदायक और सिद्धिदायक अवसर माना जाता है। वैसे तो हर महीने शिवरात्रि आती है, लेकिन सावन मास की शिवरात्रि को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन व्रत रखकर, विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और अभिषेक करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यह दिन भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने और आत्मिक शुद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

23 जुलाई को सावन शिवरात्रि का पर्व पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाएगा। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। सावन मास स्वयं भगवान शिव को समर्पित होता है, और इस मास की शिवरात्रि को “मासिक शिवरात्रि” की तुलना में विशेष रूप से फलदायी और सिद्धिदायक माना जाता है।

सावन शिवरात्रि पर रहेगा भद्रा

सावन शिवरात्रि का पर्व 23 जुलाई को मनाया जाएगा, जो शिव भक्तों के लिए अत्यंत खास माना जाता है। पंचांग के अनुसार इस दिन अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है, जबकि राहुकाल दोपहर 12:27 बजे से लेकर 2:10 बजे तक रहेगा। सावन चतुर्दशी तिथि 23 जुलाई की सुबह 4:39 बजे से शुरू होकर 24 जुलाई की सुबह 2:28 बजे तक रहेगी। इस बार शिवरात्रि पर भद्रा का साया भी रहेगा, जो सुबह 5:39 बजे से दोपहर 3:31 बजे तक रहेगा। हालांकि धार्मिक मान्यता के अनुसार शिव पूजन में भद्रा दोष का कोई प्रभाव नहीं होता, इसलिए भक्त बिना किसी विघ्न के पूरे श्रद्धा-भक्ति के साथ भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं।

क्या है भद्रा काल ?

भद्रा हिंदू पंचांग के अनुसार, एक अशुभ काल होता है, जिसे विष्टि करण की अवस्था भी कहा जाता है। इस समय को विशेष रूप से अशुभ माना जाता है और इसमें कोई भी शुभ कार्य, जैसे पूजा-पाठ, विवाह, मुंडन आदि करने से परहेज किया जाता है। मान्यता है कि भद्रा काल में किए गए धार्मिक या मांगलिक कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं या उनके नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। इसलिए सावन शिवरात्रि जैसे विशेष पर्वों पर भी पूजा-पाठ करते समय भद्रा काल का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है।

सावन शिवरात्रि का महत्व

हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह महीना स्वयं भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भक्त विशेष रूप से रात्रि के निशीथ काल में शिव पूजन करते हैं। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं यदि श्रद्धा और विधिपूर्वक सावन शिवरात्रि का व्रत रखें, तो उन्हें मनचाहा और उत्तम वर प्राप्त होता है।

वहीं, विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए करती हैं। इस दिन भोलेनाथ को जल, बेलपत्र, धतूरा, दूध और भांग अर्पित कर पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

सावन मास की शिवरात्रि का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करते हैं। इसके बाद एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है। गंगाजल से अभिषेक कर भगवान को बिल्वपत्र, चंदन, अक्षत, फल और फूल अर्पित किए जाते हैं। इस दिन शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का रुद्राक्ष की माला से 11 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। भक्त शिवलिंग के समक्ष बैठकर “राम-राम” का नाम जपते हैं, जिससे भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

सावन शिवरात्रि की चार प्रहर पूजा

शिवरात्रि की रात भगवान शिव की पूजा चार प्रहरों में की जाती है, जिसका विशेष धार्मिक महत्व होता है। प्रत्येक प्रहर में शिव जी की आराधना भिन्न-भिन्न विधियों से की जाती है।

• प्रथम प्रहर: शाम 06:59 से रात 09:36 तक
• द्वितीय प्रहर: रात 09:36 से 12:13 तक
• तृतीय प्रहर: रात 12:13 से 02:50 तक
• चतुर्थ प्रहर: रात 02:50 से सुबह 05:27 तक

इन समयों में जल, दूध, शहद आदि से महादेव का अभिषेक करना उत्तम माना जाता है।

डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है.

Related News
Home
Web Stories
Instagram
WhatsApp