साल में कुल 24 गणेश चतुर्थी आती हैं, जो विशेष रूप से शुभ मानी जाती हैं। इन दिनों भक्त गणेश जी का व्रत रखते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इनमें से एक है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, जो इस साल की आखिरी संकष्टी चतुर्थी है और पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस साल अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 7 दिसंबर यानी आज रखा जाएगा।
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है, को समर्पित होता है और साल की आखिरी संकष्टी चतुर्थी मानी जाती है। इस दिन भक्त विशेष पूजा-अर्चना और उपवास कर अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने की कामना करते हैं।
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी साल की आखिरी संकष्टी चतुर्थी होती है, जिसे पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान गणेश की विशेष पूजा और आराधना करते हैं तथा व्रत रखते हैं। अखुरथ संकष्टी चतुर्थी को विशेष रूप से विघ्नहर्ता गणेश के लिए समर्पित माना जाता है और इसे बेहद शुभ दिवस माना जाता है। भक्त इस अवसर पर गणेशजी की प्रतिमा या फोटो के सामने नारियल, हल्दी, अक्षत और अन्य पूजन सामग्री रखकर विशेष पूजा करते हैं।
महत्व
पौष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश के अखुरथ स्वरूप की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और उनके कार्य सफल होते हैं। संकष्टी चतुर्थी को ही संकटों को दूर करने वाली चतुर्थी के रूप में जाना जाता है।
शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 7 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, 7 दिसंबर को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी और इसके बाद चतुर्थी तिथि की शुरुआत होगी, जो 8 दिसंबर को शाम 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी। इस दिन गणेश जी की पूजा के साथ चंद्रदेव को अर्घ्य भी दिया जाता है।
पूजा विधि
- अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पर पूजा का विशेष महत्व है।
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
- पूजा के लिए चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति या फोटो स्थापित करें और पूरे विधि-विधान से उनका पूजन करें।
- गणेश जी को रोली, कुमकुम, अक्षत से तिलक करके फूल माला पहनाएं और उनकी प्रिय दूर्वा एवं पुष्प अर्पित करें।
- पौष मास की संकष्टी चतुर्थी पर तिल के लड्डुओं का भोग लगाना विशेष शुभ माना जाता है।
- इसके बाद धूप-दीपक जलाएं और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
- अंत में चंद्रमा उदय होने पर चंद्रदेव की पूजा करके जल अर्पित कर व्रत संपन्न करें।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
