मार्गशीर्ष मास की त्रयोदशी तिथि पर 17 नवंबर को सोमवार के दिन सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है और धर्म शास्त्रों के अनुसार इसे रखने से महादेव प्रसन्न होते हैं और विशेष फल प्राप्त होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष मास सर्वश्रेष्ठ महीनों में से एक है और इस मास में की गई पूजा-अर्चना का फल सामान्य से कई गुना अधिक मिलता है। सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
मार्गशीर्ष मास का पहला प्रदोष व्रत कल, 17 नवंबर को मनाया जाएगा। चूंकि यह सोमवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे विशेष रूप से सोम प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाता है।
सोम प्रदोष व्रत
मार्गशीर्ष मास का पहला प्रदोष व्रत 17 नवंबर को पड़ रहा है, जिसे सोमवार के दिन होने के कारण सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और धर्म शास्त्रों में इसे विशेष रूप से फलदायी बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा-अर्चना और व्रत से स्वास्थ्य, धन और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। भक्तजन इस अवसर पर उपवास रखकर और शिव मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करके सोमेश्वर शिव की कृपा प्राप्त करते हैं।
महत्व
सोम प्रदोष व्रत एक अत्यंत शुभ एवं महत्वव र्णित व्रत है जिसे शिव‑भक्तों द्वारा बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। मार्गशीर्ष मास का सोम प्रदोष व्रत आज यानी 17 नवंबर को रहेगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत मानसिक शांति, वैवाहिक सुख और पारिवारिक समृद्धि प्रदान करता है। इसे करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है और चंद्र दोष से मुक्ति भी मिलती है।
शुभ मुहूर्त
17 नवंबर 2025 को सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, इस दिन प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 27 मिनट से लेकर शाम 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद का समय होता है और इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
पूजा विधि
- सोम प्रदोष व्रत की विधि के अनुसार, व्रती सुबह स्नान कर हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लेते हैं।
- घर के मंदिर को साफ करके शाम की गोधूलि बेला में दीपक जलाना आवश्यक है।
- इसके बाद भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
- जिसमें पहले शुद्ध जल अर्पित किया जाता है और फिर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर (पंचामृत) से अभिषेक किया जाता है।
- प्रत्येक सामग्री चढ़ाते समय “ॐ नमः शिवाय” का जाप करना चाहिए।
- इसके बाद शुद्ध जल, चंदन, गुलाल और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
- बेलपत्र और शमी पत्र अर्पित कर भोग में फल और मिठाई रखी जाती है।
- अंत में भगवान शिव की आरती की जाती है और प्रदोष व्रत की कथा सुनी जाती है।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
