MP भाजपा ने बड़ा फैसला लेते हुए संगठन में “एक परिवार-एक पद” का नियम लागू कर दिया है। पार्टी का साफ संदेश है कि अब परिवारवाद की राजनीति को संस्थागत संरचना से बाहर किया जाएगा। यानी एक ही परिवार से कई लोग सक्रिय राजनीति या संगठन में पदों पर नहीं रहेंगे। यह कदम न सिर्फ युवाओं और नए चेहरों को मौका देने की कोशिश है, बल्कि पार्टी की छवि को वंशवाद से मुक्त दिखाने की पहल भी है।
नए चेहरों को मौका
भाजपा का मानना है कि इस नियम से ऐसे कार्यकर्ताओं को नेतृत्व की जिम्मेदारी दी जा सकेगी, जिनके पास क्षमता तो है लेकिन परिवार का राजनीतिक रसूख नहीं। अब संगठन में नियुक्तियां सिर्फ योग्यता और काम देखकर होंगी, न कि पारिवारिक प्रभाव के आधार पर। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यह नीति स्वागत योग्य है, क्योंकि इससे संगठन ज्यादा लोकतांत्रिक बनेगा और विभिन्न क्षेत्रों से नए लोगों को जोड़ने में आसानी होगी।
गुटबाजी बनी बड़ी चुनौती
हालांकि, इस नियम को लागू करने में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। भाजपा के भीतर गुटबाजी पहले से मौजूद है। जिन नेताओं का परिवार लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहा है, वे इस नीति से नाराज हो सकते हैं और अपने समर्थकों के जरिए अप्रत्यक्ष विरोध भी कर सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि परिवार-प्रधान नेताओं को किनारे किया गया, तो संगठनात्मक एकता पर असर पड़ सकता है।
पार्टी अनुशासन का डंडा
भाजपा का तर्क है कि कार्यकर्ता पार्टी के लिए काम करें, न कि किसी खास नेता या परिवार से बंधकर रहें। अक्सर देखा गया है कि किसी इलाके में परिवार-प्रधान नेताओं की पकड़ इतनी मजबूत हो जाती है कि वहां कार्यकर्ता पार्टी से ज्यादा उस नेता के प्रति वफादार हो जाते हैं। संगठन मानता है कि यह परंपरा गलत है और “एक परिवार-एक पद” का नियम इसे तोड़ने का जरिया बन सकता है।
सफलता की कुंजी
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नीति तभी सफल होगी जब इसे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए। यदि नियम सब पर बराबरी से लागू हुआ, तो निश्चित तौर पर भाजपा को नई ऊर्जा मिलेगी और युवाओं के लिए मौके खुलेंगे। अगर इसमें अपवाद रखे गए, तो यह सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएगा।
