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छिंदवाड़ा में कलेक्टर ने ज्ञापन लेने से किया इंकार, कांग्रेस ने कुत्ते को सौंपा ज्ञापन

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Published On: 21 August 2025

छिंदवाड़ा/भोपाल | छिंदवाड़ा जिले में उस समय सियासी बवाल खड़ा हो गया जब कलेक्टर ने कांग्रेस नेताओं का ज्ञापन लेने से इंकार कर दिया। बताया जाता है कि नेता प्रतिपक्ष समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता प्रशासनिक लापरवाही और जनता से जुड़े मुद्दों पर ज्ञापन सौंपने कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे, लेकिन कलेक्टर के सामने न आने और ज्ञापन न लेने के रवैये से नाराज़ कांग्रेस नेताओं ने विरोध स्वरूप एक कुत्ते को ज्ञापन सौंप दिया। इस अनोखे विरोध ने प्रशासन और सत्ता की मिलीभगत पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

व्यवहार को बताया अहंकार

कांग्रेस का कहना है कि कलेक्टर समेत कई प्रशासनिक अधिकारी अपनी भूमिका और जिम्मेदारी भूलकर सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि अफसर सत्ता के तलवे चाटने में इतने व्यस्त हैं कि जनता की समस्याओं और लोकतांत्रिक परंपराओं की ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। कांग्रेस ने कलेक्टर के इस व्यवहार को अहंकार बताया और कहा कि शासकीय सेवक का दायित्व जनता और विपक्ष की आवाज़ सुनना है, न कि किसी राजा की तरह दरबार लगाना।

कसा तीखा तंज

कांग्रेस नेताओं ने तीखा तंज कसते हुए कहा कि यदि प्रशासन लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों से भागेगा और सत्ता की कठपुतली बनेगा, तो जनता के बीच उसकी छवि एक “दलाल अफसर” से ज्यादा नहीं रह जाएगी। कुत्ते को ज्ञापन सौंपकर कांग्रेस ने संदेश दिया कि सत्ता के चरण चूमकर लोकतंत्र को निगलने वाले अधिकारी अंततः जनता की नज़रों में हास्यास्पद ही बनते हैं।

लगा ये आरोप

यह घटना केवल छिंदवाड़ा की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश की नौकरशाही और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है। मध्यप्रदेश में लंबे समय से यह आरोप लगते रहे हैं कि प्रशासनिक अधिकारी सत्ता के दबाव में काम करते हैं। चाहे वह चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता का सवाल हो, जनहित के आंदोलनों को दबाने की कोशिश हो या विपक्षी दलों को हाशिये पर धकेलने का मामला अक्सर अफसरों की भूमिका पर उंगलियां उठती रही हैं।

लोकतंत्र की आत्मा पर हमला

लोकतंत्र में प्रशासन जनता का सेवक होता है, न कि किसी राजनीतिक दल का एजेंट। ऐसे में यदि अधिकारी विपक्ष की बात सुनने से भी इंकार करें, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। कांग्रेस का यह विरोध भले ही असामान्य और प्रतीकात्मक रहा हो, लेकिन इसने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि आखिर प्रदेश में अफसरशाही किसके प्रति जवाबदेह है जनता के प्रति या सत्ता के प्रति?

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