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खाद पर सर्कस चला रही है सरकार, जीतू पटवारी ने लगाए गंभीर आरोप

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Published On: 22 July 2025

भोपाल | मध्यप्रदेश का किसान फिर उसी मोड़ पर खड़ा है, जहां बोवाई का समय है, लेकिन खाद की कतार है। दरअसल, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने अपने ऑफिशयल एक्स पर वीडियो शेयर कर सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं। जून-जुलाई के इस सीजन में जब खेतों में बीज पड़ने चाहिए थे, तब किसान मंडियों और वितरण केंद्रों के बाहर रात से लाइन में लगे हैं। टोकन सिस्टम की नौटंकी, अधिकारियों की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाली बयानबाज़ी और नेताओं की खामोशी… इस बार का खाद संकट बीते सालों से भी गहराया हुआ है।

जिलों से आई ज़मीन की सच्ची तस्वीर

  • धार से लेकर बड़वानी, सीहोर से लेकर गुना तक किसानों का गुस्सा सड़कों पर छलक पड़ा है।
  • धार में आरोप खुलेआम लगे कि प्रशासन, व्यापारियों और नेताओं की मिलीभगत से खाद की कालाबाजारी हो रही है।
  • सीहोर के लाडकुई गांव में भैरूंदा-सीहोर रोड जाम कर किसानों ने सीधा संदेश दे दिया—अब बर्दाश्त नहीं!
  • गुना में बारिश के बीच भी किसान घंटों लाइन में खड़े रहे, फिर भी खाली हाथ लौटे।
  • मुरैना और रहली जैसे क्षेत्रों में तो टोकन के बावजूद खाद नहीं मिली, जिससे किसानों का भरोसा पूरी तरह टूटा।
  • वर्ष दर वर्ष दोहराई जा रही वही स्क्रिप्ट

किसान के पास विकल्प नहीं

यह संकट कोई अचानक नहीं आया है। 2021 से लेकर 2024 तक, हर साल सरकार के “प्रबंधन” की पोल खुली है- कभी अंतरराष्ट्रीय युद्ध का बहाना, कभी सप्लाई में कमी, कभी बिचौलियों का बोलबाला।

इस बार 2025 में भी वही दृश्य लाइन, टोकन, हंगामा, लाचारी। सरकार के पास जवाब नहीं, किसान के पास विकल्प नहीं है। मुख्यमंत्री एक ओर पर्यटन, निवेश और आयोजनों में व्यस्त हैं। वहीं, दूसरी तरफ किसान अपनी जमीन की चिंता में रात 3 बजे से कतार में खड़ा है, फिर भी केवल 5 बोरी खाद! सवाल ये है कि सरकार किसानों को राहत देने आई है या सिर्फ आश्वासन परोसने?

क्या यह सरकार है या सर्कस?

यह सवाल अब आम किसानों की ज़ुबान पर है। हर साल के वही वादे, वही दावे, वही बहाने और वही हताशा। अब समय आ गया है कि सरकार स्पष्ट करे- क्या वह वास्तव में किसानों के लिए काम कर रही है या सिर्फ चुनावी खेती कर रही है?

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