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17 साल बाद भी अधूरा विकास, महू के सरकारी तालाब की हकीकत; भ्रष्टाचार की दलदल में डूबा सिस्टम

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Published On: 24 July 2025

भोपाल | महू के बेका गांव में जब 17 साल बाद आखिरकार तालाब बनने की खबर आई तो छह गांवों की जनता की उम्मीदें जागीं। बताया गया कि 12.7 करोड़ की लागत से यह बहुप्रतीक्षित तालाब बनेगा, जिसमें निर्माण कार्य का हिस्सा करीब 4.5 करोड़ रुपये का है। लेकिन जब यह ‘विकास’ ज़मीन पर उतरा, तो सच्चाई चौंकाने वाली थी। तालाब की पाल पर पिचिंग अधूरी, पत्थर बेतरतीब फेंके हुए और गुणवत्ता सवालों के घेरे में है।

जिस परियोजना से 6 गांवों को राहत मिलने की उम्मीद थी, वह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की मिसाल बनकर रह गई। इस पूरे काम का ठेका भाजपा के एक पूर्व मंडल अध्यक्ष के भाई को मिला, जबकि निर्माण कार्य की निगरानी वही सब-इंजीनियर कर रहा था जो पहले भी धार के कुख्यात कारम डैम फूटने के मामले में दोषी ठहराया जा चुका है।

जीतू पटवारी ने साधा निशाना

जीतू पटवारी ने कहा कि जनता 17 साल तक पानी के संकट से जूझती रही और जब उम्मीद की एक किरण दिखी, तो ठेकेदारी सिस्टम ने उस पर भी कालिख पोत दी। पाल की पिचिंग में जिस तरह से लापरवाही बरती गई, वह साफ तौर पर दर्शाता है कि कार्य केवल खानापूर्ति के लिए किया गया। करोड़ों खर्च होने के बावजूद सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई। इस परियोजना में जिस इंजीनियर को जिम्मेदारी दी गई, उसकी पुरानी भूमिका खुद सवालों के घेरे में रही है। कारम डैम हादसे में उसकी लापरवाही सामने आने के बावजूद उसे यहां दोबारा जिम्मेदारी देना बताता है कि प्रशासनिक तंत्र में ‘क्लीन चिट’ का मतलब आज भी केवल पहचान और संबंधों पर टिका है।

भ्रष्ट गठजोड़ में तोड़ रही दम

सबसे चिंताजनक बात यह है कि सरकार और राजनीतिक दलों के नाम पर ऐसी अनियमितताएं अब सामान्य होती जा रही हैं। जनता के पैसों से बनने वाली सुविधाएं, निजी ठेकेदारों और नेताओं के भ्रष्ट गठजोड़ में दम तोड़ रही हैं।

इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह साबित किया है कि मध्य प्रदेश में विकास का मतलब सिर्फ कागज़ों पर आंकड़े और फोटोज में उद्घाटन तक सीमित रह गया है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक कोई भी परियोजना जनता के जीवन में बदलाव नहीं ला पाएगी।

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