MP विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने पहली बार स्वीकार किया कि सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी जांचों से जुड़ी गंभीर अनियमितताएं लंबे समय से जारी थीं। विभाग ने माना कि 4 साल में निजी कंपनी साइंस हाउस को 12.38 करोड़ जांचों का भुगतान करते हुए राज्य सरकार ने कुल 943 करोड़ रुपए खर्च किए। इसी दौरान मरीजों और जनप्रतिनिधियों की ओर से लगातार बिलिंग और टेस्टिंग को लेकर शिकायतें आती रहीं।
सदन में दिए गए आधिकारिक जवाब में विभाग ने स्वीकार किया कि कई अस्पतालों में एक ही जांच के अलग-अलग शुल्क वसूले गए। कुछ मामलों में दरें तय पैकेज से 25 प्रतिशत तक अधिक ली गईं। मरीजों से अनावश्यक टेस्ट कराए गए और बिल में अलग-अलग शुल्क जोड़कर राशि बढ़ाई गई। कई बार रिपोर्टों में त्रुटियां मिलने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई।
68 हजार पेजों का रिकॉर्ड
कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के सवाल पर विभाग ने एक पेन ड्राइव के माध्यम से 68 हजार पन्नों का विस्तृत रिकॉर्ड सौंपा। दस्तावेजों में यह भी सामने आया कि पिछले चार वर्षों में लगभग 32 करोड़ जांचें की गईं, लेकिन इनकी बिलिंग और वास्तविक परीक्षण संख्या में भारी अंतर मिला। कई अस्पतालों में एक ही तरह की जांचों को बार-बार बिल किया गया। सबसे बड़ा खुलासा यह रहा कि हेल्थकेयर सेवाओं पर जीएसटी लागू न होने के बावजूद कई अस्पतालों ने मरीजों से 5% तक जीएसटी वसूला। विधानसभा में पेश दस्तावेजों में 18 मई 2024 के एक बिल का उदाहरण दिया गया, जिसमें 100 रुपए की जांच पर 5 रुपए जीएसटी जोड़ा गया था। ऐसे कई बिल हैं जिन्हें विभाग ने खुद भी स्वीकार किया है।
बढ़े मरीजों के खर्चे
रिकॉर्ड में यह भी बताया गया कि कई मरीजों से एक ही दिन में कई खून के सैंपल लेकर तीन से चार जांचें कराई गईं, जबकि डॉक्टर की सलाह में इनकी जरूरत नहीं थी। कुछ मामलों में मरीजों को दी गई रिपोर्ट वास्तविक सैंपल से मेल नहीं खाती थी। सोशल मीडिया और अस्पतालों में दर्ज शिकायतों में भी मरीजों ने ‘गलत रिपोर्ट’ और ‘फर्जी बिल’ की शिकायतें की थीं। इन खुलासों के बाद विपक्ष स्वास्थ्य मंत्री से जवाबदेही तय करने और साइंस हाउस के अनुबंध की समीक्षा की मांग कर रहा है। वहीं, स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि सभी दस्तावेजों की जांच कराई जा रही है और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी।
