MP विधानसभा में पेश पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति (2024-25) की रिपोर्ट ने एक महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछड़ा वर्ग के महापुरुषों के नाम से दिए जाने वाले तीन प्रमुख राज्य पुरस्कार वर्ष 2017 से लगभग ठप पड़े हैं। इनमें स्व. रामजी महाजन स्मृति सम्मान, महात्मा ज्योतिबा फुले पिछड़ा वर्ग सेवा राज्य पुरस्कार और सावित्रीबाई फुले राज्य पुरस्कार शामिल हैं, जिनका उद्देश्य समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को प्रेरित करना था।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अभिनव बरोलिया ने इस मुद्दे पर भाजपा सरकार को कड़ी आलोचना का सामना कराया। उनका कहना है कि 7 वर्षों से पुरस्कारों का रोका जाना यह दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकताओं में पिछड़ा वर्ग कहीं भी नहीं हैं। बरोलिया का आरोप है कि योग्य व्यक्तियों की कमी नहीं है, कमी है तो सरकार की इच्छाशक्ति और संवेदनशीलता की।
समाज में निराशा
बरोलिया ने कहा कि जो सम्मान समाज को प्रेरणा देने के उद्देश्य से शुरू किए गए थे, वे आज सरकारी उपेक्षा की वजह से फाइलों में धूल खा रहे हैं। उनका कहना है कि ये पुरस्कार न केवल व्यक्तियों के योगदान को मान्यता देते थे, बल्कि OBC समुदाय की सामाजिक भूमिका और उपलब्धियों को भी सम्मानित करते थे। सरकार की लापरवाही इस समुदाय की अस्मिता को आहत करती है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने मांग की कि यदि सरकार इन पुरस्कारों को दोबारा शुरू करने में सक्षम या इच्छुक नहीं है, तो उन्हें आधिकारिक रूप से बंद करने का साहस दिखाना चाहिए। उनके अनुसार यह स्थिति बेहद विरोधाभासी है कि चुनाव से पहले सरकार OBC समाज को याद करती है, और चुनाव खत्म होते ही योजनाएँ और सम्मान फ़ाइलों में दफन हो जाते हैं।
OBC सिर्फ वोट बैंक नहीं
बरोलिया ने कहा कि मध्य प्रदेश का पिछड़ा वर्ग केवल चुनावी गणित का हिस्सा नहीं है, बल्कि राज्य का रचनात्मक सामाजिक आधार है। उनका कहना है कि सरकार का रवैया OBC समुदाय के गौरव और सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला है। यह समुदाय राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उसके योगदान को नज़रअंदाज करना किसी भी सरकार के लिए उचित नहीं हो सकता।
कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह OBC समुदाय के अधिकार और प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर अपनी लड़ाई जारी रखेगी। बरोलिया ने कहा कि पार्टी सदन में भी और सड़कों पर भी इस मामले को बुलंद आवाज़ में उठाती रहेगी। उनका दावा है कि सम्मान बहाली केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का सवाल है।
