ग्वालियर | सावन मास का दूसरा सोमवार शहर को शिवमय बना गया। सुबह से ही अचलेश्वर, गुप्तेश्वर, भूतेश्वर और धूमेश्वर जैसे प्रमुख शिवालयों में भक्तों की कतारें लगनी शुरू हो गईं। लेकिन सबसे खास नजारा देखने को मिला कोटेश्वर महादेव मंदिर में, जहां भक्तों की भीड़ ने मेले का रूप ले लिया।
ग्वालियर किले की तलहटी में स्थित यह मंदिर केवल पूजा-स्थल नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और रहस्यमयी विरासत भी है। यहां शिवलिंग के साथ जुड़ी एक ऐसी कहानी है, जो आज भी श्रद्धा और रहस्य का संगम मानी जाती है।
जब औरंगजेब को हटना पड़ा पीछे
17वीं सदी में जब ग्वालियर किला मुगल शासक औरंगजेब के अधीन था, तब उसने कोटेश्वर महादेव के शिवलिंग को हटवाने का आदेश दिया। सैनिकों ने उसे किले से नीचे फिंकवा भी दिया, लेकिन जब शिवलिंग को हटवाने के लिए दोबारा प्रयास हुआ, तो एक चमत्कारी दृश्य सामने आया। कई नागों ने शिवलिंग को घेर लिया। सैनिक भयभीत होकर भाग गए। मान्यता है कि यह सब भगवान कोटेश्वर की कृपा से संभव हुआ।
सपने में हुआ शिवलिंग का दर्शन
इसके बाद वर्षों तक वह शिवलिंग मलबे में दबा रहा, लेकिन 18वीं सदी में संत देव महाराज को एक दिव्य स्वप्न आया, जिसमें नागों से रक्षित उस शिवलिंग का संकेत मिला। उन्होंने उस स्थान की खुदाई करवाई और शिवलिंग को पुनः स्थापित किया गया। बाद में जयाजीराव सिंधिया ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
ऐसे नाम पड़ा कोटेश्वर
मंदिर का नाम ‘कोटेश्वर’ इसलिए पड़ा क्योंकि शिवलिंग को जिस “कोटे” (दीवार) से नीचे फेंका गया था। उसका पुनः प्रकट होना माना गया। आज उस क्षेत्र को “कोटेश्वर नगर” कहा जाता है।
वर्तमान पुजारी कृष्णकांत शर्मा बताते हैं कि मंदिर की पिंडी (शिवलिंग) थोड़ी तिरछी है और मान्यता है कि जो कोई इस पर जल चढ़ाता है, उसे एक हजार शिवलिंगों पर जल चढ़ाने जितना पुण्य प्राप्त होता है।