उज्जैन के महाकाल लोक विकास प्रोजेक्ट से जुड़ी तकिया मस्जिद विवाद पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने मस्जिद गिराने के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए सरकार के पक्ष में निर्णय दिया। यह फैसला जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने सुनाया।
याचिकाकर्ता मोहम्मद तैयब और अन्य ने अपनी अपील में कहा था कि तकिया मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी थी और वक्फ संपत्ति पर स्थित थी। उनका कहना था कि सरकार को इस धार्मिक स्थल को तोड़ने का कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि मस्जिद को फिर से बनवाने का आदेश दिया जाए और इस कार्रवाई में शामिल अधिकारियों के खिलाफ जांच की जाए।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से वकील आनंद सोनी ने जवाब पेश करते हुए कहा कि महाकाल लोक विकास योजना के लिए संबंधित भूमि कानूनी प्रक्रिया के तहत अधिग्रहित की गई थी। उन्होंने बताया कि मस्जिद से जुड़ी जमीन के बदले वक्फ बोर्ड को मुआवजा दिया गया, और अब यह भूमि राज्य सरकार की स्वामित्व में है। सरकार ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड पहले से ही इस मुद्दे पर भोपाल स्थित वक्फ ट्रिब्यूनल में मामला दर्ज करा चुका है, इसलिए समान विषय पर दोबारा याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।
कोर्ट का स्पष्ट मत
फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास मस्जिद दोबारा बनवाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा, “किसी व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है, लेकिन यह स्वतंत्रता किसी विशेष स्थल से बंधी नहीं है। नमाज किसी भी स्वच्छ और उपयुक्त स्थान पर अदा की जा सकती है।” अदालत ने इस टिप्पणी के साथ निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया और याचिका को पूर्णतः निरस्त कर दिया।
फैसले के बाद सियासी हलचल
कोर्ट के निर्णय के बाद उज्जैन और इंदौर में राजनीतिक और धार्मिक हलचल तेज हो गई है। वक्फ से जुड़े कुछ संगठनों ने कहा है कि वे इस फैसले का अध्ययन करने के बाद आगे की कानूनी रणनीति तय करेंगे। वहीं, सरकार ने कहा कि यह फैसला “विकास कार्यों की वैधता और धार्मिक सौहार्द दोनों को संतुलित करने वाला” है।
