उज्जैन | श्रीमहाकालेश्वर मंदिर के प्रबंधन को लेकर महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी और मंदिर के पुजारियों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है। प्रेमानंद पुरी ने हाल ही में आयोजित कथा के दौरान कहा कि महाकाल मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर महानिर्वाणी अखाड़े के हवाले कर देना चाहिए। उनका दावा था कि यह मंदिर पहले अखाड़े के अधीन था और वे स्वयं इसकी जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं।
पुजारियों का तीखा जवाब
महामंडलेश्वर के इस बयान पर महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा भड़क उठे। उन्होंने कहा कि प्रेमानंद पुरी पहले अपने अखाड़े में फैली गंदगी साफ करें, जिसमें शादीशुदा संत तक बैठे हैं। शर्मा का कहना है कि पिछले 40 वर्षों से प्रशासन मंदिर की व्यवस्था सुचारू रूप से चला रहा है, और यदि कभी सरकारी नियंत्रण हटाया भी गया, तो मंदिर का अधिकार 16 पुजारियों को मिलना चाहिए, किसी अखाड़े को नहीं।
दोनों पक्षों के तर्क
प्रेमानंद पुरी का कहना है कि देशभर में कई मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हुआ है, जो अनुचित है, और उन्हें अखाड़ों को लौटा देना चाहिए। वहीं पुजारी महेश शर्मा का कहना है कि महाकाल मंदिर किसी अखाड़े का नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है, जिसकी रक्षा पुजारियों ने सदियों से मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के शासन तक की है।
विवाद की संभावना बढ़ी
इस बयानबाजी से महाकाल मंदिर का मुद्दा अब धार्मिक और प्रशासनिक बहस का विषय बन गया है। एक तरफ अखाड़ा परंपरा की बात हो रही है, तो दूसरी तरफ पुजारी अपनी पीढ़ियों से चली आ रही जिम्मेदारी और अधिकार का हवाला दे रहे हैं। फिलहाल, यह देखना होगा कि प्रशासन इस विवाद में क्या रुख अपनाता है।
