विजया दशमी के अवसर पर 2 अक्टूबर गुरुवार को श्री महाकालेश्वर मंदिर में दो बड़े धार्मिक आयोजन होंगे। सुबह मंदिर के मुख्य शिखर पर नई ध्वजा फहराई जाएगी। प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी श्री पंचायती महा निर्वाणी अखाड़ा द्वारा ध्वजा पूजन और शिखर पर नई ध्वजा लगाई जाएगी। तहसील कार्यालय ध्वजा, रस्सी, बांस, पूजन सामग्री और दक्षिणा उपलब्ध कराएगा। सुबह आरती और विधि-विधान के बाद नई ध्वजा शिखर पर फहराई जाएगी, जो वर्षभर श्रद्धालुओं को आस्था का संदेश देती रहेगी।
भव्य सवारी
संध्या 4 बजे बाबा महाकाल की भव्य सवारी नए शहर में भ्रमण के लिए निकलेगी। चांदी की पालकी में विराजित बाबा महाकाल मां महेश के रूप में दशहरा मैदान के लिए प्रस्थान करेंगे। सवारी में मंदिर के पंडे-पुजारी, अधिकारी-कर्मचारी, भक्तजन, पुलिस बैंड, घुड़सवार दल और सशस्त्र पुलिस बल के जवान शामिल होंगे।
19KM का राजसी भ्रमण
सवारी शहर के विभिन्न मार्गों से होकर दशहरा मैदान पहुंचेगी, जहां रावण दहन से पूर्व विधिपूर्वक पूजन और शमी वृक्ष का पूजन होगा। इसके बाद सवारी पुनः मंदिर के लिए प्रस्थान करेगी। कुल भ्रमण मार्ग लगभग 19 किलोमीटर होगा। इस राजसी यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को बाबा महाकाल के दर्शन का विशेष अवसर मिलेगा।
मंदिर परिसर और सवारी मार्ग पर सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती की जाएगी। सुरक्षा व्यवस्था के तहत भीड़ नियंत्रण और सड़क सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाएगा। श्रद्धालुओं से अपील की गई है कि वे मार्ग पर अनुशासन बनाए रखें और व्यवस्था में सहयोग करें।
दशहरा का महत्व
वर्ष में एक बार विजया दशमी के अवसर पर राजाधिराज श्री महाकाल अपनी प्रजा को दर्शन देते हैं। शाही सवारी और शिखर पर ध्वजा बदलने की परंपरा मंदिर और शहर की धार्मिक आस्था का प्रतीक है। इस आयोजन से न केवल श्रद्धालुओं की आस्था प्रकट होती है बल्कि नगर में सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव की झलक भी देखने को मिलती है।