उज्जैन | गणेश चतुर्थी के पहले दिन उज्जैन का चिंतामन गणेश मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर खास इसलिए है क्योंकि यहां भगवान गणेश एक साथ तीन स्वरूपों चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक में विराजमान हैं। मान्यता है कि इन प्रतिमाओं की स्थापना स्वयं भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने वनवास काल में की थी।
उज्जैन शहर से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर देश के प्रमुख गणेश धामों में गिना जाता है। भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने के बाद यदि मंदिर की पिछली दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगी जाए तो वह पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु दोबारा आकर सीधा स्वास्तिक बनाते हैं और भगवान का आभार प्रकट करते हैं। कई भक्त रक्षा सूत्र भी बांधते हैं और कामना पूर्ण होने पर उसे खोलने वापस आते हैं।
त्योहार पर विशेष अनुष्ठान
गणेश चतुर्थी पर बुधवार सुबह 4 बजे मंदिर के पट खोले गए। 6:30 बजे चोला आरती और 7:30 बजे भोग आरती संपन्न हुई। परंपरा के अनुसार इस पूरे दस दिवसीय उत्सव में प्रतिदिन भगवान गणेश को एक लाख लड्डुओं का भोग अर्पित किया जाएगा, जिसे प्रसाद स्वरूप भक्तों में वितरित किया जाएगा। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। मंदिर को फूलों से सजाया गया है और सुरक्षा के विशेष इंतजाम भी किए गए हैं।
श्रृंगार से पहले गणेश जी का दूध और जल से अभिषेक हुआ, उसके बाद सिंदूर से विशेष श्रृंगार कर मोदक व मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाया गया। यहां श्रद्धालु खासतौर पर दूब की तीन पत्तियां चढ़ाते हैं। मान्यता है कि चिंतामण गणेश चिंताओं को दूर करते हैं, इच्छामण गणेश इच्छाएं पूर्ण करते हैं और सिद्धिविनायक गणेश भक्तों को रिद्धि-सिद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि वनवास काल में जब राम, लक्ष्मण और सीता इस क्षेत्र से गुजरे तो सीता जी को प्यास लगी। लक्ष्मण ने तीर से भूमि पर प्रहार किया, जिससे यहां पानी निकला और एक बावड़ी बनी। आज भी इसे लक्ष्मण बावड़ी कहा जाता है। इसी स्थान पर राम ने चिंतामण, लक्ष्मण ने इच्छामण और सीता ने सिद्धिविनायक की पूजा की थी।
मंदिर का वर्तमान स्वरूप लगभग 250 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था। इससे पहले परमार काल में भी इसका जीर्णोद्धार हुआ था। मंदिर के विशाल खंभे उसी युग की कलाकारी को दर्शाते हैं।
गणेश चतुर्थी के मौके पर देशभर से आए भक्त यहां तीनों स्वरूपों के दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं। उज्जैन का यह अनोखा मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं बल्कि इतिहास और परंपरा का जीवंत प्रतीक भी है।
