उज्जैन | मध्य प्रदेश के उज्जैन के विश्वविख्यात श्री महाकालेश्वर मंदिर में मंगलवार तड़के एक बार फिर आस्था का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। मंदिर के कपाट ब्रह्ममुहूर्त में खोले गए और पूरे विधि-विधान के साथ भगवान महाकाल की दिव्य भस्म आरती संपन्न हुई। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, डमरू की गूंज, और मंत्रोच्चार से माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक हो गया। आरती की शुरुआत सभा मंडप में वीरभद्र जी के कान में स्वस्तिवाचन के साथ हुई।
घंटियां बजाकर भगवान से अनुमति ली गई, इसके बाद सभा मंडप और गर्भगृह के चांदी के पट खोले गए। भगवान महाकाल का पूर्व श्रृंगार उतारकर, पंचामृत से विधिपूर्वक पूजन किया गया और फिर कर्पूर आरती से प्रभु का स्वागत किया गया।
नंदी बाबा का हुआ पूजन
भस्म आरती से पहले त्रिनेत्रधारी भगवान महाकाल को भांग, चंदन, त्रिपुंड, रुद्राक्ष की माला और रजत मुकुट अर्पित किया गया। यह श्रृंगार महाकाल की निराकार से साकार यात्रा का प्रतीक माना जाता है। जलाभिषेक के बाद दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया गया। नंदी हाल में नंदी बाबा का भी विशेष पूजन हुआ। महाकाल को रजत चंद्र, त्रिशूल मुकुट, भांग और सुगंधित भस्म अर्पित की गई। साथ ही रजत से बना शेषनाग मुकुट, मुण्डमाल और रुद्राक्ष की माला पहनाई गई। पुष्पों से सजे हार और विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों का भोग प्रभु को अर्पित किया गया।
उमड़ा जनसैलाब
जैसे ही झांझ, मंजीरे और डमरू के साथ भस्म आरती शुरू हुई, मंदिर परिसर शिवमय हो गया। महा निर्वाणी अखाड़े की ओर से लाई गई पवित्र भस्म से भगवान को अर्पण किया गया। मान्यता है कि इस आरती के बाद ही भगवान महाकाल भक्तों को साक्षात साकार रूप में दर्शन देते हैं। इस दिव्य अनुष्ठान को देखने के लिए देशभर से श्रद्धालु उज्जैन पहुंचे थे। आरती के दौरान उमड़े जनसैलाब ने एक बार फिर साबित कर दिया कि महाकाल की नगरी में हर सुबह, सिर्फ सूरज ही नहीं, आस्था भी उगती है।
