आज पूरे देश भर में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा रहा है, जो कि भाई-बहन के प्रेम, निष्ठा, आदर, सम्मान का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा धागा बांधती हैं, बदले में भाई उन्हें रक्षा करने का वादा करता है, साथ ही उन्हें तोहफे में शगुन या फिर गिफ्ट देते हैं। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे के दिन को खास बनाने के लिए तरह-तरह के तरीक़े अपनाते हैं। यह दिन इनके लिए बहुत ही खास होता है।
रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार रक्षाबंधन 9 अगस्त यानी आज को मनाया जा रहा है। इस दौरान कई शुभ योग भी बन रहे हैं।
पौराणिक कथाएं
ज्योतिष शास्त्र की मानें, तो 40 साल बाद इस बार शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस बार भद्रा का साया नहीं रहेगा, इसलिए पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है। इसके अलावा, आज ही सूर्य और बुध कर्क राशि में एक साथ होंगे, जिससे बुध-आदित्य योग बनेगा। रक्षाबंधन का त्यौहार तो सभी लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई, किसने पहली बार इस रक्षा धागे को भाई की कलाई पर बांधा होगा? यदि नहीं, तो आज के आर्टिकल में हम आपको इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं बताएंगे, साथ ही इसका इतिहास भी बताएंगे। आइए जानते हैं विस्तार से यहां…
माता लक्ष्मी-राजा बलि
हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। ऐसे में मान्यता यह है कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत मां लक्ष्मी ने ही की थी। तब से ही यह परंपरा निभाई चली जा रही है। दरअसल, यह कथा राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। जब उन्होंने तीन पग धरती दान में मांगी थी और राजा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने आकर बढ़कर तीन पग में ही पूरी धरती नाप ली और राजा बलि को रहने के लिए पाताल लोक दे दिया। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा कि मैं जब भी देखूं, तो सिर्फ आपको ही देखूं, हर क्षण में आपको ही महसूस करना चाहता हूं। उसके बाद भगवान विष्णु के साथ राजा रहने लगे, जिससे माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं और नारद जी के पास जा पहुंचीं। तब उन्होंने भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय बताया।
उस उपाय को मानते हुए माता लक्ष्मी भेष बदलकर राजा बलि के पास पहुंचीं और वहां रोने लगीं। जब राजा बलि ने माता से उनके रोने का कारण पूछा, तो मां ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है, इसलिए वह रो रही हैं। इस बात को सुनकर राजा ने तुरंत कहा कि आज से मैं आपका भाई हूं। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी और बदले में उन्होंने भगवान विष्णु को मांग लिया। तभी से भाई-बहन का यह पावन त्यौहार मनाया जाता है।
रानी कर्णावती- हुमायूं
वहीं, एक और पौराणिक कथा के अनुसार, मुगल बादशाह ने एक हिंदू रानी को अपनी बहन माना था। दरअसल, 16वीं शताब्दी में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया था। तब राज्य की रक्षा के लिए मेवाड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर सहायता मांगी। हुमायूं ने राखी स्वीकार करते हुए रानी कर्णावती को अपनी बहन माना और चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए सेना भेजी। कहा जाता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत हुई।
श्रीकृष्ण-द्रौपदी
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में जब चोट लगी थी, तब द्रौपदी ने साड़ी का आंचल काटकर उंगली पर बांधा था, जिसे रक्षाबंधन माना गया। वहीं, भगवान श्रीकृष्ण ने भी बदले में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उन्हें साड़ी प्रदान की थी। तब से ही रक्षाबंधन का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
