आज पूरे देश भर में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा रहा है, जो कि भाई-बहन के प्रेम, निष्ठा, आदर, सम्मान का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा धागा बांधती हैं, बदले में भाई उन्हें रक्षा करने का वादा करता है। साथ ही, उन्हें तोहफे में शगुन या फिर गिफ्ट देते हैं। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे के दिन को खास बनाने के लिए तरह-तरह के तरीक़े अपनाते हैं। यह दिन इनके लिए बहुत ही खास होता है।
खेतों में धान की बाली लहराने लगी है, मिट्टी की खुशबू में सावन की ठंडक घुली है और इसी मौसम में रक्षाबंधन का त्योहार ग्रामीण अंचलों में एक अलग ही रौनक लेकर आता है। यहां राखी सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते की रस्म नहीं, बल्कि पूरे गांव को जोड़ने वाला एक भावनात्मक उत्सव बन जाता है।
कई दिन पहले से शुरू कर देती हैं तैयारियां
गांवों में रक्षाबंधन की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। बहनें बाजार से रंग-बिरंगी राखियां खरीदने के बजाय अक्सर खुद ही सूत और रंगीन धागों से राखी बनाती हैं। किसी घर में महुए की खुशबू वाले लड्डू बनते हैं, तो कहीं गुड़ और तिल से मिठाई तैयार होती है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार भी इस दिन भाई की कलाई खाली न रहे, इसके लिए अपनी हैसियत से बढ़कर तैयारी करते हैं।
सुबह से दिखती है उमंग
त्योहार के दिन सुबह-सुबह गांव के कुएं और तालाब पर स्नान के बाद महिलाएं पारंपरिक परिधान में सज-संवरकर भाइयों के घर पहुंचती हैं। आंगन में बैठाकर वे कलाई पर राखी बांधती हैं, तिलक करती हैं और धान के कुछ दाने व दूब देकर दीर्घायु की कामना करती हैं। बदले में भाई उन्हें नारियल, कपड़े या कुछ रुपये भेंट करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि कई गांवों में यह त्योहार सिर्फ रिश्तेदारों तक सीमित नहीं रहता। पड़ोसी, खेत-मेहनत के साथी और यहां तक कि गांव के बुजुर्ग भी ‘राखी भाई’ बन जाते हैं। यह परंपरा न सिर्फ रिश्तों में मिठास घोलती है, बल्कि आपसी सहयोग और भरोसे को भी मजबूत करती है।
भागदौड़ से राहत
ग्रामीणों के लिए रक्षाबंधन का दिन खेतों की भागदौड़ से राहत लेकर आता है। फसल के बीच के इस छोटे से उत्सव में लोग गीत गाते हैं, ढोलक की थाप पर नाचते हैं और एक-दूसरे के घर जाकर पकवानों का स्वाद लेते हैं। कई जगह भाई अपनी बहनों को शहर तक छोड़ने जाते हैं, रास्ते में हाट-बाजार से उनके लिए जरूरत का सामान खरीदते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने समय में राखी का मतलब सिर्फ कलाई पर धागा नहीं, बल्कि यह वचन था कि जरूरत पड़ने पर भाई चाहे कितनी भी दूरी हो, बहन की मदद को जरूर पहुंचेगा। आज भी यह भाव गांवों में उतना ही जीवंत है।
