हिमाचल प्रदेश के कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटरेरी फेस्टिवल में पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के एक बयान ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है। इंदिरा गांधी सरकार के ऑपरेशन ब्लू स्टार पर की गई उनकी टिप्पणी से कांग्रेस नेतृत्व और कार्यकर्ता दोनों नाराज बताए जा रहे हैं।
चिदंबरम ने कहा था कि इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने का गलत तरीका चुना था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कुछ साल बाद सरकार ने बिना सेना का इस्तेमाल किए एक बेहतर तरीका अपनाया था। इस टिप्पणी के बाद से कांग्रेस खेमे में असंतोष की लहर है।
पार्टी सूत्रों का रुख
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, शीर्ष नेतृत्व ने इस बयान को “अनुचित और असावधान” बताया है। पार्टी का कहना है कि जिस नेता को कांग्रेस ने ऊंचा स्थान दिया है, उसे सार्वजनिक मंचों पर ऐसे बयान नहीं देने चाहिए जो पार्टी की ऐतिहासिक नीतियों या नेताओं की गरिमा पर सवाल उठाएं।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “बार-बार ऐसे बयान पार्टी को असहज करते हैं। कांग्रेस का इतिहास संघर्षों से भरा है, और उसे नकारात्मक रोशनी में दिखाना अनुचित है।”
राशिद अल्वी का पलटवार
चिदंबरम के बयान पर पूर्व सांसद राशिद अल्वी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “यह बेहद दुखद है कि एक वरिष्ठ नेता पार्टी के खिलाफ बात कर रहे हैं। कांग्रेस ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, फिर भी वह वही बातें दोहरा रहे हैं जो भाजपा कहती है।” अल्वी ने यहां तक कहा कि “क्या चिदंबरम किसी केस के दबाव में हैं? उन्हें पार्टी की कमियों पर नहीं, भाजपा की नीतियों पर बोलना चाहिए।”
ऑपरेशन ब्लू स्टार
जून 1984 में चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय राजनीति के सबसे विवादित सैन्य अभियानों में से एक रहा। इसका उद्देश्य था, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में डेरा डाले चरमपंथी नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके समर्थकों को बाहर निकालना। आठ दिनों तक चले इस अभियान में अकाल तख्त को भारी नुकसान हुआ और सैकड़ों लोगों की मौत हुई। इसके कुछ महीनों बाद, इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे।
बयान ने बढ़ाई सियासी बेचैनी
कांग्रेस फिलहाल बयान पर औपचारिक टिप्पणी करने से बच रही है, लेकिन भीतरखाने में नाराजगी साफ झलक रही है। पार्टी चाहती है कि चिदंबरम जैसे वरिष्ठ नेता संवेदनशील मुद्दों पर “संवेदनशील शब्दों” का इस्तेमाल करें। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस विवाद ने न सिर्फ कांग्रेस की पुरानी यादों को ताजा कर दिया है, बल्कि उसके भीतर की वैचारिक असहमति को भी उजागर कर दिया है।
