मध्य प्रदेश (MP) में अक्टूबर के आखिर में भी बारिश और गरज-चमक वाला मौसम बना हुआ है। इसका कारण दक्षिण-पूर्वी अरब सागर में बना लो प्रेशर एरिया (निम्न दबाव क्षेत्र) बताया जा रहा है। इस सिस्टम का असर अब राज्य के दक्षिणी हिस्सों में दिख रहा है, जहां पिछले 24 घंटे में ग्वालियर, जबलपुर, नर्मदापुरम, बैतूल समेत 12 जिलों में हल्की बारिश हुई। मैहर जिले के अरगट गांव में बुधवार शाम बड़ा हादसा हो गया। आकाशीय बिजली गिरने से एक महिला और एक किसान की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो अन्य किसान गंभीर रूप से झुलस गए। घायलों को इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल ले जाया गया है।
4 दिन तक रहेगा असर
मौसम विभाग का कहना है कि अगले चार दिन तक यह सिस्टम सक्रिय रहेगा। गुरुवार को बड़वानी, खरगोन, खंडवा, बुरहानपुर, बैतूल, पांढुर्णा और बालाघाट में बूंदाबांदी, आंधी और गरज-चमक की संभावना जताई गई है। 24 से 26 अक्टूबर के बीच इसका असर इंदौर, नर्मदापुरम और जबलपुर संभाग तक फैल सकता है। मौसम वैज्ञानिक डॉ. दिव्या ई. सुरेंद्रन के मुताबिक, अरब सागर का यह सिस्टम धीरे-धीरे उत्तर दिशा की ओर बढ़ रहा है। इसके साथ ही, दो चक्रवाती हवाएं और पश्चिमी विक्षोभ भी सक्रिय हैं, जिसकी वजह से ठंडी हवाएं और उमस दोनों का असर मिलाजुला रहेगा।
दिन गरम, रातें ठंडी
राज्य में फिलहाल अजीब मौसम देखने को मिल रहा है। दिन में तापमान 32 डिग्री पार, जबकि रात का पारा 18 से 20 डिग्री तक नीचे जा रहा है। भोपाल में बुधवार रात 18.2 डिग्री, इंदौर में 20.8, ग्वालियर में 22.2, और जबलपुर में 22.1 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। मौसम विभाग का कहना है कि अक्टूबर के अंत तक यही हाल रहेगा, जबकि तेज ठंड नवंबर के दूसरे हफ्ते से शुरू होगी।
इस बार ठंड लंबी चलेगी
आईएमडी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल ला-नीना परिस्थितियों के कारण 2010 के बाद की सबसे सर्द सर्दी पड़ सकती है। ठंड का असर फरवरी तक महसूस होगा और इस दौरान बरसात भी सामान्य से ज्यादा हो सकती है। 13 अक्टूबर को मानसून आधिकारिक तौर पर पूरे एमपी से विदा हो चुका है। फिर भी “विदाई के बाद की बारिश” अभी जारी है। इस साल मानसून की हैप्पी एंडिंग रही। 30 जिलों में सामान्य से ज्यादा बारिश, जबकि सिर्फ शाजापुर में पानी की कमी दर्ज की गई। सबसे ज्यादा बारिश गुना जिले में हुई, जहां 65.7 इंच पानी गिरा, जबकि श्योपुर में बारिश 216% तक दर्ज की गई। अच्छी बारिश से इस बार भूजल स्तर मजबूत रहेगा और फसल व सिंचाई के लिए पानी की कोई कमी नहीं होगी।
